नेशनल हाईवे क्रमांक ७ कटनी जवलपुर के बीच रोड किनारे वाला गांव जो कटनी जिला मुख्यालय से १५ क.म. की दुरी पर है , यह रोड के दो भागों में विभाजित है।
नैगवॉ गॉव में श्रीमती उत्तरा बाई पति श्री राम सिंह ठाकुर वर्ष २००२ से जैविक खेती का प्रशिक्षण कटनी जिले के KVK पिपरौंध से लेकर अपने 8.50 एकड़ ज़मीन के कुछ हिस्से पर जैविक खेती के तौर तरीकों को अपनाना प्रारम्भ किया था । निवर्तमान कलेक्टर श्री आर.आर. गंगारेकर जी एक दिन शाम को उनके खेत पहुंच गए, की हमे भी जैविक तरीको से उगाई गयी सब्जी दे दो। जब खेत जाकर देखा की उस समय की ५ किलो केचुआ से बनाई गयी वर्मी कम्पोस्ट और खेतों में बने नापेड के पिट और शाम ढलते ही गोबर गैस से जलने वाले बल्व दिखाई दे रहे थे । उन्होंने उत्तरा बाई को जैविक किसान घोषित कर दिया । समय बढ़ता गया परन्तु मांग और उत्पादन का संतुलन बनाते हुए यह परिवार जैविक खेती करने के लिए पीछे नहीं हटा, इनकी देखा देखी गॉव के १०-१५ किसानो ने भी जैविक खेती के तौर तरीको को सीखने के लिए उत्सुक हुए और महिला किसान उत्तरा बाई की तरह सब लोग अपने घरो और खेतों मई केचुआ खाद की टंकी, गोबर गैस, जीवामृत खाद, मछलीखाद, गौमूत्र से मटका खाद बनाने की प्रकिया धीरे -धीरे आगे बढ़ाने लगे।
उत्तरा बाई के खेतों में सिर्फ जैविक खेती को बढ़ावा देना बस नहीं था, उत्पादन को ध्यान में रखते हुए जैविक पद्धति को प्रमोट किया । जिसमे धान की नर्सरी से लेकर खेत में रोपाई का समय व पौधों की लम्बाई को ध्यान में रखकर खेतों में SRI पद्धति से रोपा जाता है । जिन पथरीली मुरुम वाले खेतो में वर्षा ऋतु की एक फसल लेना मुश्किल था, वह अब काम पानी होने के बावजूद भी ३ फसलें लगाई जाने लगी हैं। रबी की फसल में गेहू, चना और मसूर खरीफ की फसल में धान मक्का आदि व सब्जी में बरबटी, करेला, प्याज, लहसुन, मिर्ची, आलू आदि प्रकार की सब्ज़ियां उगाई लेन लगी। आज दिनांक को जब हम उत्तरा बाई के खेत पहुंचे तो बरबटी की तोड़ाई चालू थी, जबकि करेला, बैंगन कई प्रकार की सब्ज़ियां लगी हुई थी। उत्तरा बाई के साथ सिर्फ इतना ही नहीं है, की उन्होंने सिर्फ अपने गाओं और अपने खेतो में जैविक का उदाहरण प्रस्तुत किया है, उनके घर में प्रवेश करते ही अलमारी में कई प्रकार के पुरस्कार रखे दिखाई देते हैं। पंचायत, जिला व प्रदेश स्तर के भोपाल तक के पुरस्कार प्राप्त हैं।
उत्तरा बाई के पति PGS सिस्टम को भी जानते हैं, परन्तु वो कहते हैं, इसमें कई प्रकार की खामियां हैं, क्यूंकि इसमें गलत लोगों के प्रवेश होने का खतरा है।
जो जैविक खेती नहीं करते वो भी शामिल हो सकते हैं, या बाद में उत्पादन बढ़ाने के लिए कुछ-कुछ नई तकनीक के माध्यम से आय बढ़ाने के लिए तरकीब निकल सकते हैं। इन्ही छोटी-छोटी भ्रांतियों को सुलझाने और किसानो को समझने के लिए हम सब मिलकर मानव जीवन विकास समिति के सक्षम कार्यकर्ताओं के सहयोग से भूमि-का के बैनर तले रहकर किसानो को, लोगो को समझने का अभियान चलाकर काम करने की सम्भावना बनती है। ताकि किसानो में जैविक खेती के प्रति रुझान और उनका सही उपयोग हो कर सही दाम मिल सके, इस ओर प्रयास करने की सम्भावना बनती है।
उत्तरा बाई के काम को देख कर सरकार ने जैविक पाठशाला खोल दी है, जिसमें हर बुधवार को आस-पास के कई किसान पढ़ने आते हैं। और उत्तरा बाई उनको जैविक खेती के बारे में पढाई करवाती है। नैगवॉ गॉव की जैविक पद्यति को देख कर आस-पास के कई गावों में भी इसी प्रकार की तकनीक अपनाने के लिए किसान तैयार हुए हैं, और तैयार को रहे हैं। पास का ही गॉव बण्डा इसका उदाहरण बन रहा है।
उत्तरा बाई के काम को देख कर सरकार ने जैविक पाठशाला खोल दी है, जिसमें हर बुधवार को आस-पास के कई किसान पढ़ने आते हैं। और उत्तरा बाई उनको जैविक खेती के बारे में पढाई करवाती है। नैगवॉ गॉव की जैविक पद्यति को देख कर आस-पास के कई गावों में भी इसी प्रकार की तकनीक अपनाने के लिए किसान तैयार हुए हैं, और तैयार को रहे हैं। पास का ही गॉव बण्डा इसका उदाहरण बन रहा है।
निर्भय सिंह